भविष्य की जंग: ज़मीन नहीं, आसमान और मिसाइलें तय करेंगी युद्ध का रुख – पृथ्वीराज चव्हाण
- Lucky Kumar
- 1 day ago
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भारत की सैन्य रणनीति को लेकर एक अहम और विचारोत्तेजक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भले ही भारत सेना के आकार के मामले में पाकिस्तान से कहीं आगे है, लेकिन हालिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य की जंग पारंपरिक ज़मीनी युद्ध नहीं होगी, बल्कि उसका केंद्र हवाई ताकत, मिसाइल प्रणाली और आधुनिक तकनीक होगी।
12 लाख सैनिकों की बड़ी सेना पर सवाल
पृथ्वीराज चव्हाण ने भारत की लगभग 12 लाख सैनिकों वाली विशाल सेना की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि आने वाले वर्षों में ज़मीनी सैनिकों की भूमिका सीमित होती जाएगी। उनके अनुसार, आधुनिक युद्ध की प्रकृति तेजी से बदल रही है, जहां बड़ी संख्या में सैनिकों की बजाय अत्याधुनिक हथियार, सटीक मिसाइलें, ड्रोन तकनीक और एयर स्ट्राइक ज्यादा निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि पारंपरिक युद्ध की अवधारणा अब पुरानी हो चुकी है और दुनिया के बड़े सैन्य शक्तिशाली देश अपनी सेनाओं को नए सिरे से ढाल रहे हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ से क्या सीख?
चव्हाण के मुताबिक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह साफ कर दिया कि भविष्य के युद्ध सीमाओं पर आमने-सामने की लड़ाई से नहीं, बल्कि तकनीकी श्रेष्ठता से जीते जाएंगे। हवाई हमले, सटीक मिसाइल स्ट्राइक और रियल-टाइम इंटेलिजेंस अब युद्ध के परिणाम तय करेंगे।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से आधुनिक युद्धों में कम समय में बड़ा असर डाला जा रहा है, वह इस बात का संकेत है कि सैन्य रणनीति को अब पुराने ढर्रे पर नहीं चलाया जा सकता।
आधुनिक तकनीक और हथियारों की भूमिका
पृथ्वीराज चव्हाण ने जोर देते हुए कहा कि भविष्य के युद्धों में:
हवाई शक्ति (Air Power)
मिसाइल क्षमता (Missile Capability)
साइबर वॉरफेयर
ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
सैटेलाइट और निगरानी तकनीक
सबसे अहम भूमिका निभाएंगे। ऐसे में केवल बड़ी सेना रखना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि सेना को तकनीकी रूप से अधिक सक्षम बनाना जरूरी है।
सैन्य रणनीति में बदलाव की ज़रूरत
चव्हाण ने कहा कि भारत को भविष्य के खतरों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अपनी सैन्य नीति और रणनीति में बदलाव करना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा नई तकनीक, आधुनिक हथियार प्रणालियों और रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर खर्च किया जाना चाहिए।
उनका मानना है कि बदलते वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में भारत को केवल संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि गुणवत्ता और तकनीकी बढ़त के आधार पर अपनी ताकत को परिभाषित करना चाहिए।
राजनीतिक और रणनीतिक बहस तेज
पृथ्वीराज चव्हाण के इस बयान के बाद देश में सैन्य रणनीति को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। जहां एक ओर इसे भविष्य की सच्चाई से जोड़कर देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञ ज़मीनी सेना की भूमिका को अभी भी अहम मानते हैं।
हालांकि, यह साफ है कि आधुनिक युद्ध की तस्वीर तेजी से बदल रही है और भारत को भी समय के साथ अपनी रक्षा नीति को नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है।
पृथ्वीराज चव्हाण का बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि बदलते युद्ध स्वरूप की ओर इशारा करता है। आने वाले समय में यह तय करना भारत के लिए जरूरी होगा कि वह अपनी सैन्य शक्ति को किस दिशा में विकसित करता है—परंपरागत संख्या पर आधारित मॉडल या आधुनिक तकनीक और रणनीतिक क्षमता पर केंद्रित मॉडल।
भविष्य की जंग शायद ज़मीन पर नहीं, बल्कि आसमान और मिसाइलों की मार से लड़ी जाएगी—और इसमें जीत उसी की होगी, जो तकनीक में आगे होगा।



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