नितिन नबीन बने भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, गिरिराज सिंह ने कांग्रेस पर कसा जोरदार तंज
- Sonu Yadav
- 15 hours ago
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भाजपा के संगठन में हाल ही में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं, जिसमें नितिन नबीन को पार्टी का नया राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इस नियुक्ति के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है और विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया भी सामने आने लगी है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस मौके पर कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए तंज कसा। उन्होंने कहा कि भाजपा कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो केवल किसी एक परिवार या नेहरू खानदान के इर्द-गिर्द घूमती रहे।
गिरिराज सिंह ने आगे विस्तार से कहा कि भाजपा में नेतृत्व और पदों का निर्धारण कार्यकर्ताओं की मेहनत, संगठनात्मक क्षमता और पार्टी में योगदान के आधार पर किया जाता है। उन्होंने बताया कि नितिन नबीन की नियुक्ति इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक जीवंत उदाहरण है, जो दिखाती है कि पार्टी में अवसर और जिम्मेदारी पूरी तरह से कार्यकर्ताओं की योग्यता और प्रतिबद्धता पर आधारित हैं।
उन्होंने कांग्रेस पार्टी की तुलना करते हुए कहा कि वहां अक्सर परिवारवाद और खानदानी राजनीति की प्रथा देखने को मिलती है। इसके विपरीत, भाजपा ने हमेशा से संगठन और कार्यकर्ताओं के बीच पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्य बनाए रखने पर जोर दिया है। गिरिराज सिंह का यह बयान कांग्रेस पर सीधे निशाना साधते हुए पार्टी की राजनीतिक शैली और संगठनात्मक ढांचे में अंतर को उजागर करता है।
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि नितिन नबीन की नियुक्ति भाजपा के संगठनात्मक मजबूती और भविष्य की रणनीति को दर्शाती है। उनके नेतृत्व में पार्टी न केवल चुनावी मोर्चे पर बल्कि संगठन के हर स्तर पर बेहतर समन्वय और सक्रियता ला सकेगी। वहीं, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बयान ने कांग्रेस की पारंपरिक राजनीतिक शैली को लेकर नई बहस भी छेड़ दी है।
इस नियुक्ति और बयान के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि भाजपा अपनी आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत कर रही है और नितिन नबीन के नेतृत्व में संगठन को नई ऊर्जा मिलने की उम्मीद है। वहीं, विपक्षी दलों के लिए यह एक चुनौती भी हो सकती है, क्योंकि पार्टी की मजबूती और कार्यकर्ता-केंद्रित नेतृत्व से आगामी चुनावी रणनीतियों में मजबूती आएगी।
इस प्रकार, नितिन नबीन की नियुक्ति न केवल भाजपा के संगठन में बदलाव को दर्शाती है, बल्कि भारतीय राजनीति में पारंपरिक परिवारवाद और लोकतांत्रिक नेतृत्व के बीच के अंतर को भी स्पष्ट करती है।



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