अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा भारतीय रुपया, 90.56 तक फिसलने से बढ़ी चिंता
- Lucky Kumar
- 16 hours ago
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भारतीय मुद्रा बाजार में शुक्रवार को बड़ी हलचल देखने को मिली जब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर 90.56 तक गिर गया। यह अब तक का सबसे कमजोर स्तर माना जा रहा है। रुपये की इस गिरावट ने न सिर्फ वित्तीय बाजारों को झकझोर दिया, बल्कि आम जनता, कारोबारियों और नीति-निर्माताओं की चिंता भी बढ़ा दी है।
कैसे गिरा रुपया रिकॉर्ड स्तर तक?
शुक्रवार को इंटरबैंक फॉरेक्स मार्केट में रुपया कमजोर शुरुआत के साथ खुला और दिनभर दबाव में रहा। कारोबार के दौरान रुपये में लगातार गिरावट देखी गई और अंततः यह 90.56 प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंच गया। इससे पहले रुपये का पिछला निचला स्तर इससे कुछ कम था, लेकिन वैश्विक और घरेलू कारणों के मेल ने इसे ऐतिहासिक गिरावट तक पहुंचा दिया।
रुपये की कमजोरी के प्रमुख कारण
1. मजबूत अमेरिकी डॉलर
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मजबूत संकेतों और ब्याज दरों में लंबे समय तक कटौती न होने की आशंका के चलते डॉलर इंडेक्स मजबूत बना हुआ है। डॉलर की मजबूती का सीधा असर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर पड़ता है, जिसमें भारतीय रुपया भी शामिल है।
2. कच्चे तेल की ऊंची कीमतें
भारत अपनी ज़रूरत का बड़ा हिस्सा आयात करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से भारत का आयात बिल बढ़ता है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया कमजोर होता है।
3. विदेशी निवेशकों की बिकवाली
हाल के दिनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने भारतीय शेयर बाजार से धन निकाला है। जब विदेशी निवेशक पैसा निकालते हैं, तो वे रु
पये को डॉलर में बदलते हैं, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ता है।
4. वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे संघर्ष और अनिश्चितताओं ने सुरक्षित निवेश के तौर पर डॉलर की मांग बढ़ा दी है। इसका असर भी रुपये की कमजोरी के रूप में सामने आया।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ेगा असर?
रुपये की गिरावट के सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों तरह के प्रभाव होते हैं।
नकारात्मक प्रभाव
महंगाई बढ़ने का खतरा: आयातित वस्तुएं महंगी होंगी, खासकर पेट्रोल-डीजल, गैस और इलेक्ट्रॉनिक सामान
विदेशी कर्ज महंगा: जिन कंपनियों और सरकार पर विदेशी मुद्रा में कर्ज है, उनकी लागत बढ़ेगी
करंट अकाउंट पर दबाव: आयात महंगा होने से व्यापार घाटा बढ़ सकता है
सकारात्मक प्रभाव
निर्यात को बढ़ावा: कमजोर रुपया भारतीय निर्यातकों के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि उनके उत्पाद विदेशों में सस्ते पड़ते हैं
आईटी और फार्मा सेक्टर को लाभ: जिन कंपनियों की कमाई डॉलर में होती है, उन्हें रुपये की कमजोरी से फायदा मिलता है
RBI की भूमिका पर नजर
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) स्थिति पर करीबी नजर बनाए हुए है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रुपये में गिरावट बहुत तेज और अस्थिर होती है, तो RBI डॉलर बेचकर हस्तक्षेप कर सकता है ताकि मुद्रा में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोका जा सके।
हालांकि, RBI आमतौर पर किसी एक स्तर को बचाने के बजाय स्थिरता बनाए रखने पर ध्यान देता है।
आगे क्या हो सकता है?
विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले दिनों में रुपये की दिशा कई बातों पर निर्भर करेगी—
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति
कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव
विदेशी निवेशकों का रुख
वैश्विक राजनीतिक हालात
यदि डॉलर मजबूत बना रहता है और वैश्विक अनिश्चितता बढ़ती है, तो रुपये पर दबाव जारी रह सकता है। हालांकि, मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार भारत को इस चुनौती से निपटने में मदद कर सकता है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90.56 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचना भारतीय रुपये के लिए एक गंभीर संकेत है। यह गिरावट वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों, मजबूत डॉलर और विदेशी निवेशकों के रुख का नतीजा है। आने वाले समय में सरकार और RBI की रणनीति यह तय करेगी कि रुपया कितनी जल्दी स्थिरता की ओर लौटता है।



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