अंडों में नाइट्रोफ्यूरान मिलने के बाद देशभर में अलर्ट, जिले में बिना सैंपल जांच के ही अंडों को बताया सुरक्षित
- Lucky Kumar
- 2 hours ago
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दिल्ली में अंडों में हानिकारक एंटीबायोटिक नाइट्रोफ्यूरान पाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने पूरे देश में सतर्कता बढ़ा दी है। इस मामले को गंभीर मानते हुए केंद्र ने सभी राज्यों को अलर्ट जारी कर अंडों के नमूने लेने और उनकी जांच कराने के निर्देश दिए हैं। वहीं, जिले में पशुपालन विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि विभाग ने नमूना संग्रह और लैब जांच किए बिना ही अंडों को पूरी तरह सुरक्षित घोषित कर दिया है।
क्या है नाइट्रोफ्यूरान और क्यों है खतरनाक?
नाइट्रोफ्यूरान एक प्रतिबंधित एंटीबायोटिक है, जिसका उपयोग पशुओं और मुर्गियों में बीमारी के इलाज के लिए पहले किया जाता था। हालांकि, इसके लंबे समय तक सेवन से कैंसर, लीवर डैमेज और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा रहता है। इसी वजह से भारत समेत कई देशों में इसके उपयोग पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है। दिल्ली में अंडों में इसके अवशेष मिलने के बाद यह मामला और भी संवेदनशील हो गया है।
केंद्र सरकार का अलर्ट, राज्यों को सख्त निर्देश
दिल्ली की जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में अंडों के सैंपल कलेक्शन, लैब टेस्टिंग और निगरानी सुनिश्चित करें। खाद्य सुरक्षा और उपभोक्ता स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया है, ताकि किसी भी संभावित खतरे को समय रहते रोका जा सके।
जिले में पशुपालन विभाग का दावा
हालांकि, जिले में पशुपालन विभाग ने केंद्र के निर्देशों से अलग रुख अपनाया है। विभाग का कहना है कि जिले में उत्पादित अंडे पूरी तरह सुरक्षित हैं और लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। विभाग का दावा है कि उसने मुर्गियों के स्वास्थ्य की जांच कराई है और सभी पोल्ट्री फार्म में हालात सामान्य पाए गए हैं।
पशुपालन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, जिले में संचालित सभी 155 लेयर फार्म और 66 पोल्ट्री फार्म का निरीक्षण किया गया है। इन निरीक्षणों के आधार पर ही अंडों को सुरक्षित बताया गया है,
हालांकि इस दौरान अंडों के नमूने लेकर प्रयोगशाला जांच नहीं कराई गई।
रोज़ाना करीब 11.8 लाख अंडों का उत्पादन
पशुपालन विभाग के मुताबिक, जिले में प्रतिदिन लगभग 11 लाख 80 हजार अंडों का उत्पादन होता है। यह अंडे पूरी तरह से स्थानीय बाजार में खपत हो जाते हैं और जिले की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैं। विभाग का कहना है कि स्थानीय स्तर पर उत्पादन होने के कारण बाहरी अंडों की निर्भरता कम है, जिससे जोखिम और भी घट जाता है।
उठ रहे हैं सवाल
हालांकि, बिना सैंपल जांच के अंडों को सुरक्षित घोषित करना कई सवाल खड़े करता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि केवल मुर्गियों की शारीरिक जांच से यह तय नहीं किया जा सकता कि अंडों में किसी प्रतिबंधित दवा के अवशेष मौजूद हैं या नहीं। इसके लिए वैज्ञानिक परीक्षण और लैब रिपोर्ट जरूरी होती है।
स्थानीय उपभोक्ताओं और सामाजिक संगठनों ने भी मांग की है कि केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार जिले में भी अंडों की नमूना जांच कराई जाए, ताकि लोगों का भरोसा बना रहे और किसी भी तरह का स्वास्थ्य जोखिम टाला जा सके।
जनता की सेहत से जुड़ा मामला
अंडा आम लोगों के भोजन का अहम हिस्सा है, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और खिलाड़ियों के लिए। ऐसे में इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों का कहना है कि पारदर्शिता और वैज्ञानिक जांच ही इस मामले में सबसे बेहतर समाधान है।
आगे की राह
अब देखना होगा कि क्या जिला प्रशासन और पशुपालन विभाग केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुरूप सैंपल जांच की प्रक्रिया शुरू करते हैं या नहीं। फिलहाल विभाग के दावों के बावजूद, यह मामला जनता की सेहत से जुड़ा होने के कारण पूरी तरह शांत नहीं हुआ है।



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