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वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में टूटी वर्षों पुरानी परंपरा: हलवाई को वेतन न मिलने से नहीं बना ठाकुर जी का भोग

  • Writer: Lucky Kumar
    Lucky Kumar
  • 2 days ago
  • 3 min read

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उत्तर प्रदेश के वृंदावन स्थित श्री ठाकुर बांके बिहारी मंदिर से जुड़ी एक बेहद संवेदनशील और चौंकाने वाली खबर सामने आई है। मंदिर में वर्षों से चली आ रही ठाकुर जी के भोग की परंपरा उस समय टूट गई, जब भोग बनाने वाले हलवाई को वेतन न मिलने के कारण बाल भोग और शयन भोग तैयार नहीं किया गया। यह घटना न सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए आस्था का विषय बनी, बल्कि मंदिर प्रशासन और व्यवस्था पर भी कई सवाल खड़े कर गई।


सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी हाई पावर कमेटी


श्री ठाकुर बांके बिहारी मंदिर की व्यवस्थाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही सख्त रुख अपना चुका है। मंदिर में दर्शन व्यवस्था, भीड़ नियंत्रण, सुरक्षा और प्रशासनिक सुधारों को लेकर अदालत ने एक हाई पावर कमेटी (HPC) का गठन किया था। इसी कमेटी के अंतर्गत मंदिर की दैनिक व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने के लिए कई नियुक्तियां की गईं, जिनमें ठाकुर जी के लिए भोग और प्रसाद तैयार करने वाले हलवाई की नियुक्ति भी शामिल है।


80 हजार रुपये मासिक वेतन, लेकिन महीनों से भुगतान नहीं


मिली जानकारी के अनुसार, ठाकुर बांके बिहारी जी के लिए भोग तैयार करने वाले हलवाई को प्रति माह 80,000 रुपये वेतन दिया जाता है। यह वेतन मंदिर की व्यवस्था के तहत तय किया गया था ताकि भोग की गुणवत्ता और परंपरा बनी रहे।हालांकि, बीते कुछ महीनों से हलवाई को समय पर वेतन नहीं मिल रहा था। कई बार अनुरोध और शिकायत के बावजूद जब भुगतान नहीं हुआ, तो हलवाई ने मजबूरी में ठाकुर जी के लिए बाल भोग और शयन भोग बनाना बंद कर दिया।


बाल भोग और शयन भोग न बनने से मचा हड़कंप


ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में दिनचर्या के अनुसार बाल भोग और शयन भोग का विशेष महत्व है। यह सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि सदियों पुरानी सेवा परंपरा का हिस्सा है।जब श्रद्धालुओं को यह जानकारी मिली कि ठाकुर जी का भोग नहीं बना है, तो मंदिर परिसर में चर्चा और चिंता का माहौल बन गया। भक्तों के लिए यह खबर भावनात्मक रूप से बेहद पीड़ादायक रही।


प्रशासन और प्रबंधन पर उठे सवाल


इस पूरे मामले ने मंदिर प्रबंधन और हाई पावर कमेटी की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।भक्तों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर व्यवस्था बनाई गई है, तो फिर वेतन जैसी बुनियादी जिम्मेदारियों में लापरवाही क्यों हो रही है?वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं में देरी और तालमेल की कमी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई।

आस्था बनाम व्यवस्था की टकराहट


यह घटना साफ तौर पर आस्था और प्रशासनिक व्यवस्था के बीच टकराहट को दर्शाती है। ठाकुर बांके बिहारी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाओं का केंद्र है।ऐसे में भोग जैसी परंपरा का रुकना यह दिखाता है कि व्यवस्था में छोटी सी चूक भी कितनी बड़ी धार्मिक और सामाजिक प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है।


जल्द समाधान की उम्मीद


मंदिर से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है और जल्द ही हलवाई के बकाया वेतन का भुगतान कर व्यवस्था को सामान्य किया जाएगा।श्रद्धालुओं को भी उम्मीद है कि यह घटना प्रशासन के लिए एक सबक बनेगी और भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा उत्पन्न नहीं होगी।


वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में भोग न बनने की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक परंपराओं की निरंतरता के लिए मजबूत और संवेदनशील प्रशासनिक व्यवस्था बेहद जरूरी है।श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़े मामलों में किसी भी प्रकार की लापरवाही न सिर्फ व्यवस्था को, बल्कि विश्वास को भी ठेस पहुंचाती है।


अब सबकी नजर इस पर है कि मंदिर प्रशासन और हाई पावर कमेटी इस मामले को कितनी जल्दी सुलझाती है और ठाकुर जी की सेवा परंपरा को फिर से पूरी श्रद्धा और नियमबद्ध तरीके से आगे बढ़ाती है।

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